Spoilers Alert!
"सीता रामम" एक बहुत सुंदर प्रेम कहानी है। मैंने इस फिल्म के सभी महत्वपूर्ण सीन को समझाने की कोशिश की है, इसलिए यह रीकैप थोड़ा लंबा होने वाला है।
यह फिल्म वर्ष 1964 के एक दृश्य से शुरू होती है जिसमें अंसारी नाम का एक आतंकवादी नेता अपने युवा आतंकवादियों को ऑपरेशन जिब्राल्टर के बारे में निर्देश दे रहा होता है। उसके अनुसार, ये आतंकवादी सीमा पार करके कश्मीर में प्रवेश करेंगे और वहां कुछ बड़ा करेंगे जो भारत को दहला देगा। उन युवा आतंकवादियों में से एक का नाम रशुल है। उसकी एक छोटी बहन है जिसका नाम वहीदा है। आतंकवादी नेता अंसारी ने वहीदा को अपने पास ही रख लिया है।
अगले दृश्य में, वे आतंकवादी एक पाकिस्तानी चेकपॉइंट को पार करने की कोशिश कर रहे होते हैं जहां अबू तारिक नाम का एक पाकिस्तानी सेना अधिकारी उन्हें रोकता है। आतंकवादी उसे बताते हैं कि वे एक गुप्त मिशन के लिए सीमा पार कर रहे हैं। लेकिन वह उन्हें पार नहीं करने देता क्योंकि उसे ऐसे किसी मिशन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली होती है। तभी उसे एक वरिष्ठ पाकिस्तानी अधिकारी का फोन आता है, जो अबू तारिक़ को उन्हें जाने देने के लिए कहता है और निर्देश देता है की इस बात को किसी भी रिकॉर्ड में दर्ज़ नहीं करे क्योंकि यह एक गुप्त मिशन है। इसलिए, ना चाहते हुए भी उसे उन आतंकवादियो को चेकपॉइंट पार करने देना पड़ता है।
अगला दृश्य वर्ष 1985 का है। इसमें आफरीन नाम की एक पाकिस्तानी लड़की है जो लंदन में पढ़ाई कर रही है। वह भारत और भारतीयों से नफरत करती है। वह जब भी किसी भारतीय को देखती हैं तो भारत के खिलाफ नारे लगान शुरू कर देती है। एक दिन वह एक कार देखती है जिस पर भारतीय ध्वज लगा होता है। वह उसे देखकर इतने गुस्से में आ जाती है कि वह कार को ही आग लगा देती है। पर वह जिस कार को जलाती है वह एक भारतीय उद्योगपति आनंद मेहता की होती है। उसकी इस हरकत के लिए कॉलेज प्रशासन उसे आनंद मेहता से माफ़ी मांगने के लिए कहता है लेकिन वह माफ़ी नहीं मांगती है। कॉलेज प्रशासन उसे इसके लिए कॉलेज से निष्कासित करना चाहता है लेकिन आनंद मेहता नहीं चाहते थे कि उसकी पढाई पर इस बात का कोई असर पड़े। उनके अनुसार, उस लड़की के अंदर की नफरत को केवल प्यार से समाप्त किया जा सकता है। आफरीन को इस बात का कोई असर नहीं पड़ता है। इसलिए, आनंद मेहता उसे दो विकल्प देते हैं या तो वह अपनी हरकत के लिए उनसे माफी मांगे या फिर उस कार के लिए मुआवजा दे, जिसकी कीमत 10 लाख थी।
वह मुआवजा देने के लिए सहमत हो जाती है, लेकिन उसके पास इतने पैसे नहीं होते हैं। इसलिए, वह पाकिस्तान में अपने दादाजी से मिलने का फैसला करती है क्योंकि वही एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जो उसे इतना पैसा दे सकते हैं। आफरीन लंदन आने के बाद से कभी अपने दादाजी से मिलने नहीं गई क्योंकि उन्होंने उसे जबरदस्ती लंदन भेज दिया था जबकि वह लंदन नहीं आना चाहती थी। पर उसके पास कोई और विकल्प नहीं था। इसलिए आफरीन अपने दादाजी से मिलने के लिए पाकिस्तान जाती है। यहां हमें पता चलता है कि उसके दादाजी कोई और नहीं बल्कि अबू तारिक ही हैं, जिन्होंने फिल्म की शुरुआत में आतंकवादियों को सीमा पार करने से रोकने की कोशिश की थी।
लेकिन जब वह अपने घर पहुंचती है, तो उसे पता चलता है कि उसके दादाजी का निधन महीनों पहले हो गया था। फिर वह अपने वकील से संपर्क करती है, और उसका वकील उसे बताता है कि उसने उसे फोन करने की कोशिश की, लेकिन उसने कभी जवाब नहीं दिया। उसका वकील उसे बताता है कि उसके दादाजी ने उसके लिए एक चिठ्ठी छोड़ी है। उस चिठ्ठी में लिखा था कि जब तक उसे यह पत्र मिलेगा, तब तक वह मर चुके होंगे। लेकिन अपने अंतिम क्षणों में वह अपने दोस्त लेफ्टिनेंट राम को २० वर्ष पहले किया हुआ वादा तोडना नहीं चाहते हैं। वादे के अनुसार लेफ्टिनेंट राम ने सीता महालक्ष्मी को देने के लिए उन्हें एक पत्र दिया था। वह इस पत्र को सीता तक पहुंचा कर अपना वादा पूरा करना चाहते थे पर पत्र कभी दिए गए पते तक नहीं पहुंचा। अब यह आफरीन की जिम्मेदारी है कि वह इस पत्र को सीता तक पहुंचाए और यह लेफ्टिनेंट राम का आफरीन पर क़र्ज़ भी है।
दादाजी का पत्र पढ़ने के बाद आफरीन असमंजस में पड़ जाती है कि आखिर उसके दादाजी एक दुश्मन सैनिक के दोस्त कैसे बन गए और लेफ्टिनेंट राम का कोई कर्ज उस पर क्यों हैं जबकि वह उनको जानती भी नहीं। और तो और ये राम और सीता के पत्र में क्या ख़ास हैं जिसे मुझे पहुँचाना ही पड़ेगा। लेकिन फिर वह यह सब भूलकर अपने वकील से पैसे मांगने लगती है जो उसे अपने दादा की मृत्यु के बाद मिलने वाले थे। तब उसका वकील उसे बताता है कि उसके दादा की इच्छा के अनुसार, उसे विरासत तभी मिलेगी जब वह लेफ्टिनेंट राम का पत्र सीता तक पहुंचाएगी।
कोई अन्य विकल्प न देखकर, वह पत्र देने के लिए सहमत हो जाती है। फिर वह भारत पहुँच जाती है और अपने इस काम को पूरा करने के लिए बालाजी नाम के अपने एक सीनियर से मदद लेती है। जब वह पत्र पर लिखे पते पर पहुंचती है, तो उसे पता चलता है कि वह जगह अब एक गर्ल्स कॉलेज है और उनके रिकॉर्ड के अनुसार, सीता महालक्ष्मी नाम की कोई भी लड़की वहां कभी नहीं रहती थी। उसने बहुत प्रयास किया लेकिन उसे सीता महालक्ष्मी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी।
सीता के बारे में जब कोई जानकारी नहीं मिली तो वह लेफ्टिनेंट राम के बारे में पता लगाने का फैसला करती है। उसके दादाजी के पत्र के अनुसार, लेफ्टिनेंट राम मद्रास रेजिमेंट से थे। इसलिए, वह वही से पता लगाना शुरू करती हैं। थोड़ा खोजने के बाद उसे लेफ्टिनेंट राम की एक तस्वीर मिलती है और उनके दोस्त विकास के बारे में भी पता चलता है। वह जब विकास से मिलती है तब वह उसे राम की कहानी बताता है।
अब फिल्म फ्लैशबैक में जाती है जिसमें लेफ्टिनेंट राम को कश्मीर में सीमा पर दिखाया जाता है। सेना के जवान वहाँ भूखे रहते हुए अपनी ड्यूटी निभा रहे होते हैं क्यूंकि खराब मौसम के कारण सेना के पास पर्याप्त भोजन नहीं पहुँच सका होता है। निगरानी रखते समय अचानक राम कुछ लोगों को अपनी ओर आते हुए देखता है। उसे वे लोग कश्मीरी लगते हैं, लेकिन विष्णु नाम के उसके वरिष्ठ अधिकारी को लगता है कि वे आतंकवादी हैं और राम को उन पर गोली चलाने का आदेश देता है। राम गोलियां चलाता है लेकिन जानबूझकर कोई गोली निशाने पर नहीं मारता है। जब वह लोग पास आते है तब पता चलता है की वह लोग कश्मीरी मुसलमान हैं जो सेना के लिए राशन लाए थे। राम के सीनियर को यह पसंद नहीं आता है।
अगले सीन में आतंकवादी नेता अंसारी को दिखाया जाता है जो की चाहता रहता है कि भारतीय सेना को फिल्म की शुरुआत में सीमा पार भेजे गए युवा आतंकवादियों के बारे में पता चल जाए। वह चाहता है कि भारतीय सेना उन्हें मार डाले और स्थानीय लोगों की नजर में नौजवानों के हत्यारे बन जाए। इससे भारत में अराजकता और दंगे होंगे और यही ऑपरेशन जिब्राल्टर का असली उद्देश्य रहता है।
अगले दृश्य में हमें दिखाया गया है कि भारतीय सेना को उन युवा आतंकवादियों के बारे में पता चल जाता है और वे चर्चा कर रहे होते हैं कि कुछ बड़ा करने से पहले उन्हें कैसे खत्म किया जाए। हालांकि, इतनी बड़ी खुफिया जानकारी का इतनी आसानी से मिलने पर राम को दाल में कुछ काला लगता है। लेकिन कोई भी उसकी बात नहीं सुनता है, और वरिष्ठ अधिकारी विष्णु उन आतंकवादियों को मारने के लिए निकल पड़ता है।
विष्णु राम को अपने दस्ते में नहीं चुनता है और 5 में से 4 आतंकवादियों को मार गिराता है। जैसे ही स्थानीय लोग सेना को निहत्थे नौजवानो को मारते हुए देखते हैं, वे क्रोधित हो जाते हैं और सेना पर पथराव शुरू कर देते हैं।
इस गंभीर पारिस्थिति का फायदा उठाते हुए आतंकवादी नेता स्थानीय लोगों को पास के हिंदू गांव को जलाने के लिए भड़का देता है। पर लेफ्टिनेंट राम को उसकी योजना के बारे में पता चल जाता है। वह गांव को पहले ही खाली करा देता है और एक आतंकवादी को पकड़कर स्थानीय लोगों के सामने यह साबित कर देता है कि मारे गए लोग वास्तव में आतंकवादी थे।
इस बात की हर जगह प्रसंशा होने लगती है कि कैसे लेफ्टिनेंट राम ने इतनी जटिल स्थिति को अच्छी तरह से संभालते हुए इतने सारे लोगों की जान बचाई। इसीलिए ऑल इंडिया रेडियो की एक महिला कर्मचारी उनका इंटरव्यू लेती है। इंटरव्यू में राम ने उसे बात ही बात में बताया कि वह अनाथ है। इस साक्षात्कार को रेडियो पर प्रसारित करते समय वह महिला कहती है कि उसने राम को अपना बेटा माना है और उसने उसे एक पत्र भेजा है ताकि वह अकेला महसूस न करे और वह सभी भारतीय नागरिकों से अनुरोध करती है कि वह सभी राम को पत्र लिखे ताकि वह महसूस कर सके कि वह अकेले नहीं है और पूरा भारत उसका परिवार है।
फिर हम देखते हैं कि लेफ्टिनेंट राम को पूरे भारत से बोरे भर-भर के पत्र आने शुरू हो जाते हैं। राम उन सभी पत्रों को पढ़ता है और पत्रों द्वारा उनका जवाब भी देता है। पत्र लिखने वाले कुछ लोग उसे अपना बेटा मानते हैं तो कुछ उसे भाई मानते हैं। लेकिन एक पत्र था जो बाकियों से अलग था जो सीता महालक्ष्मी नाम की एक महिला द्वारा भेजा गया था।
सीता-रामम की प्रेम कहानी:
सीता महालक्ष्मी ने पत्र में लिखा था कि "अपनी पत्नी के रहते हुए वह कैसे कह सकता है कि उसका कोई नहीं है?" राम पत्र पढ़कर खुश भी होता है और सोच में भी पड़ जाता है कि यह लड़की कौन है जो खुद को उसकी पत्नी बता रही है। पत्र पढ़कर ऐसा लगता है कि वह लड़की सच में राम की पत्नी है और उससे बहुत प्यार करती है। फिर राम को सीता के पत्र मिलने शुरू हो जाते हैं लेकिन वह उनका जवाब नहीं दे पाता है क्योंकि पत्र पर कोई पता नहीं रहता है। सीता के पत्रों को पढ़ते पढ़ते राम को भी सीता से प्यार होने लगता है।
फिर एक दिन सीता का एक पत्र मिलता है जिसमें वह राम को बताती है कि वह एक मैजिक शो देखने के लिए हैदराबाद जाने वाली है। पत्र पर दिल्ली का स्टाम्प लगा हुआ था। इससे राम को पता चल जाता है कि सीता दिल्ली में रहती है और दी गई तारीख को दिल्ली से हैदराबाद जाने वाली है। इसलिए, वह छुट्टी लेकर उस तारीख को दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंच जाता है। वहां वह हैदराबाद जा रही ट्रेन में चढ़ जाता है और सीता को ढूढ़ने लगता है। कुछ समय बाद वह सीता को देखता है और देखते ही रह जाता है क्यूंकि वह बहुत कि खूबसूरत रहती है। उसे देखते ही वह समझ जाता है कि यही वह लड़की है जिसे वह ढूंढ रहा था। ट्रेन से उतरने से पहले वह सीता को कुछ पत्र देता है जो कि सीता के सभी पत्रों के जवाब रहते हैं। सीता उन सारे पत्रों को पढ़ती है। एक पत्र में राम बताता है कि वह हैदराबाद में एक दोस्त के घर पर रह रहा है, अगर वह चाहे तो मिलने आ सकती है।
अगले दिन सीता बताये गए पते पर पहुँच जाती है। राम उसे देखकर खुश हो जाता है और बातों ही बातों में अपने दिल की बात कहना शुरू कर देता है। लेकिन सीता घबरा जाती है और राम से कहती है कि उसने तो उन पत्रों को यह सोचकर लिखा था कि वह राम से कभी सचमुच में नहीं मिलेगी। फिर वह राम से कहती तो ये है कि बेहतर होता कि वे नहीं मिलते, लेकिन उसकी आंखें कुछ और ही कह रही होती हैं। फिर वह वहाँ से चली जाती है।
फिर फ्लैशबैक ख़त्म होता है और फिल्म वर्तमान में आती है जहां विकास आफरीन से कहता है कि उसे आगे कि कहानी नहीं पता है। वह उसे राम के अन्य दोस्त दुर्जय के बारे में बताता है।
इसी बीच राम का पता लगाने के लिए आफरीन राम के वरिष्ठ अधिकारी विष्णु को भी फ़ोन लगाती है जो जल्द ही सेवानिवृत्त होने वाला है। लेकिन जब विष्णु को पता चला कि कोई लेफ्टिनेंट राम के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने की कोशिश कर रहा है, तो वह घबरा जाता है और अपने जवानों से उस आफरीन के बारे में सब कुछ पता लगाने के लिए कहता है।
अगले सीन में आफरीन की मुलाकात दुर्जय से होती है जो उसे आगे की कहानी बताता है। फिल्म फिर से फ्लैशबैक में जाती है।
राम और सीता मैजिक शो में मिलते हैं, जहां राम को पता चलता है कि सीता राजकुमारी नूरजहां को नृत्य सिखाती है। फिर दोनों का मिलना जुलना शुरू हो जाता है और दोनों के बीच में प्यार होने लगता है। इसी बीच एक दिन सीता राम को बताती है कि वह राम से ट्रेन में मिलने से पहले भी मिल चुकी है। राम सोच में पड़ जाता है क्यूंकि वह सीता से पहली बार ट्रेन में ही मिला रहता है। पर सीता उसे बताती है कि जब (फिल्म के शुरुआत में) उस हिन्दू गांव को राम ने जलने से बचाया था तब वह वहाँ घूमने गयी थी और सीता ही वही लड़की है जिसे भीड़ से बचाने के लिए राम ने अपनी पत्नी कहा था। तभी से वह राम को उसकी पत्नी बनकर पत्र लिखने लगी। यह सुनने के बाद राम को सीता से और ज्यादा प्यार हो जाता है और वह सीता के सामने शादी का प्रस्ताव रखता है। पर सीता घबरा जाती है और वह बिना कुछ कहे वहां से चली जाती है।
फिर फ्लैशबैक ख़त्म होता है और फिल्म वर्तमान में आती है जहां दुर्जय आफरीन को सीता की तस्वीर दिखाता है। आफरीन उस तस्वीर को लेकर गर्ल्स कॉलेज जाती है ताकि फोटो दिखाकर सीता के बारे में पता लगा सके। लेकिन जब वह कॉलेज पहुंचती है, तो उसकी नज़र एक पेंटिंग पर पड़ती है जोकि सीता की रहती है लेकिन पेंटिंग के नीचे राजकुमारी नूरजहां लिखा रहता है। तब हमें पता चलता है कि सीता वास्तव में कोई और नहीं बल्कि खुद राजकुमारी नूरजहां ही थी पर वह राम को अपनी असली पहचान नहीं बता पायी। इसीलिए जब भी अबू तारिक़ सीता महालक्ष्मी कि लिए वह पत्र भेजता था तो वह वापस हो जाता था क्यूंकि सीता महालक्ष्मी नाम कि कोई लड़की होती ही नहीं है।
फिल्म फिर से फ्लैशबैक में जाती है जहां सीता/नूरजहाँ असमंजस में है क्योंकि वह राम से प्यार करती है, लेकिन वह उससे शादी नहीं कर सकती क्योंकि वह एक राजकुमारी है, और उसका परिवार उसे एक आम आदमी से शादी नहीं करने देगा। इसी बीच सीता के लिए चीजें और मुश्किल हो जातीं हैं क्योंकि ओमान में राष्ट्रिय संकट आ जाता है और वहां का शाही परिवार सीता के परिवार की ओमान में स्थित सम्पत्तियों को जब्त कर लेता है। सीता के फॅमिली सलाहकार के अनुसार सम्पत्तियों पर नियंत्रण पाने का एकमात्र तरीका यही है कि ओमान का राजकुमार नूरजहाँ से शादी करले। यह बात सुनते ही वह दुखी हो जाती है पर अपने परिवार को राम के बारे में नही बता पाती है। फिर उसका परिवार सलाहकार की बात मानते हुए नूरजहाँ से शादी का प्रस्ताव ओमान के राजकुमार को भेज देता है।
अगले दिन राम और सीता हैदराबाद में फिर से मिलते हैं पर सीता राम को कुछ नही बताती है। राम सीता से कहता है कि उसकी छुट्टियां ख़त्म होने वाली है पर सीमा पर वापस जाने से पहले वह उन सभी से मिलना चाहता है जिन्होंने उसे पत्र भेजे थे। सीता भी उसके साथ उन लोगों से मिलने जाती है। फिर जब वह सबसे मिल लेता है, तो वह सीता से कहता है कि अगले दिन शाम में वह कश्मीर के लिए ट्रेन पकड़ेगा और जाने से पहले वह उससे रेलवे स्टेशन पर मिलना चाहता है। पर अगले दिन सीता रेलवे स्टेशन नहीं पहुंच पाती है क्योंकि उसी दिन ओमान से कुछ लोग उसे देखने के लिए आ जाते है और ये समाचार लेकर आते हैं कि ओमान के राजकुमार ने उनके विवाह प्रस्ताव के लिए हाँ कह दिया है।
उधर राम को सीता से मिले बिना ही ड्यूटी पर लौटना पड़ा और इसकी वजह से वह काफी दुखी हो जाता है और उसे लगा की उसकी प्रेम कहानी ख़त्म हो गयी। लेकिन राम और सीता की प्रेम कहानी ख़त्म होने के पहले ही एक रिपोर्टर राम और सीता की एक-दूसरे के साथ बिताये हुए समय की तस्वीरें अखबार में प्रकाशित कर देता है, जिसमें कहता है कि राजकुमारी नूरजहाँ एक आम आदमी से प्यार करती है। जब ओमान के लोगों को इसके बारे में पता चलता है, तो वे नूरजहां के परिवार से सवाल करते हैं। पर उसका परिवार इस बात से अनजान होता है इसलिए वो नूरजहां से पूछते हैं। इस बार वह उनको सब कुछ बता देती है और अपनी सगाई तोड़ देती है। फिर वह श्रीनगर में राम के पास पहुँच जाती है। राम और सीता मिलते है और प्यार का इजहार करते हैं। फ्लैशबैक यहां समाप्त हो जाता है।
फिल्म वर्तमान में वापस आ जाती है, जहां आफरीन को पता चलता है कि नूरजहां कश्मीर में है। इसलिए, वह कश्मीर पहुंचती है, लेकिन विष्णु के आदेश पर उसे सेना के जवान गिरफ्तार कर लेते हैं और पूछताछ करने लगते है कि वह एक गद्दार (राम) के बारे में क्यों जानना चाहती है, जो 32 सैनिकों की मौत के लिए जिम्मेदार है। आफरीन कंफ्यूज हो जाती है क्योंकि वह अबतक जिस किसी से भी मिली थी, उसने राम को एक अच्छा इंसान और देशभक्त बताया था। तभी वरिष्ठ अधिकारी विष्णु उससे मिलने आता है और वह उसे बताता है कि राम गद्दार नहीं था और वास्तव में वह राम और आफरीन के दादाजी का ऋणी है क्योंकि उन्होंने उसकी जान बचाई थी।
कहानी फिर फ्लैशबैक में जाती है। राम और सीता एक रेस्टोरेंट में हैं। वरिष्ठ अधिकारी विष्णु और उसका परिवार भी वही आ जाता है। लेकिन अचानक रशुल नाम का आतंकवादी (जो पहले भाग गया था) रेस्टोरेंट के अंदर आता है और विष्णु के सिर पर बंदूक तान देता है। लेकिन राम की सूझबूझ से वो रशुल को पकड़ने में कामयाब हो जाते हैं। राम रशुल के प्रति दया दिखाता है और आतंकवादी नेता अंसारी के ठिकाने के बारे में पता लगा लेता है।
फिर सेना की एक बैठक में फैसला लिया जाता है कि अंसारी को खत्म करने की जरूरत है। सेना का यह मिशन गुप्त होगा और कोई भी सैनिक अगर पकड़ा जाता है, तो उसे देश द्वारा अस्वीकार कर दिया जाएगा। राम का नाम भी इस गुप्त मिशन में जाने वालों की लिस्ट में होता है। हालांकि ऐसे मिशन के बारे में किसी को बताया नही जा सकता फिरभी राम सीता को गुप्त मिशन के बारे में बता देता है। यह सुनकर वह डर जाती है लेकिन उसे यह भी विश्वास रहता है की राम मिशन पूरा करके उसके पास वापस आ जाएगा।
फिर राम और उसके सैनिक सीमा पार करके अंसारी के ठिकाने पहुंच जाते हैं और उसको खत्म कर देते हैं। मिशन पूरा हो जाता है और सभी वहां से निकल जाते है लेकिन तभी राम एक छोटी लड़की के रोने की आवाज सुनता है जोकि एक जलते हुए घर से आ रही होती है। राम उस लड़की को बचाने के लिए घर के अंदर वापस जाता है, तब पता चलता है कि वह लड़की कोई और नही बल्कि रसूल की बहन वहीदा है। राम उसे बचा तो लेता है पर इतने समय में, पाकिस्तानी अधिकारी अबू तारिक वह आ जाता है और राम और विष्णु को गिरफ्तार कर लेता है। फिर पाकिस्तानी सेना उन्हें बंधक बनाकर लगातार प्रताड़ित करती है।
अबू तारिक ने राम को एक पाकिस्तानी लड़की को बचाने के लिए अपनी जान पर खेलते हुए देखा था इसलिए वह जानता था की वो अच्छे लोग और इसलिए वह उनके बचाव में आता है। उसके और नूरजहां के प्रयासों से वे भारत और पाकिस्तानी सेना के बीच एक डील करवाने में कामयाब हो जाते हैं। प्रस्ताव के अनुसार विष्णु और राम के बदले भारतीय जेल में बंद एक पाकिस्तानी सैनिक को छोड़ा जाएगा। लेकिन पाकिस्तानी सेना तय करती है कि दोनों में से केवल एक को ही जाने देगी। जब विष्णु को इस बात का पता चलता है तो वह राम को दोष देना शुरू कर देता है। हमें यहाँ पता चलता है कि वह पाकिस्तानी सेना द्वारा लगातार टॉर्चर के कारण इस समय विष्णु मानसिक रूप से स्थिर नहीं है। फ्लैशबैक यहीं समाप्त हो जाता है।
इस दृश्य में विष्णु आफरीन को बताता है कि राम ने उसके लिए क़ुरबानी दे दी थी। खुद पाकिस्तान में कैदी रह कर उसे भारत वापस जाने के लिए कहा था। विष्णु आगे बताता है कि उसी साल पाकिस्तानी सेना ने 12 भारतीय ठिकानों पर हमला करके 32 भारतीय सैनिकों को मार डाला था। और भारतीय खुफिया ब्यूरो को यह जानकारी मिली थी कि राम ने भारतीय ठिकानों के बारे में पाकिस्तानी सेना को बताया था। फिर विष्णु आफरीन से कहता है कि वह जानता है कि राम देशद्रोही नही है और उसने ऐसा नहीं किया होगा।
इतना कहने के बाद अचानक वह इन सभी समस्याओं के लिए आफरीन को दोष देना शुरू कर देता है। वह कहता है कि राम आफरीन को ही बचाने के दौरान पकड़ा गया और आफरीन ही वहीदा है। अबू तारिक ने राम को पकड़ने के बाद उसे गोद ले लिया था। यह सुनते ही आफरीन को अपने दादाजी के खत कि याद आयी जिसमे उन्होंने लिखा था कि आफरीन पर लेफ्टिनेंट राम का क़र्ज़ है। आफरीन सोचने लगती है कि आज अगर वह ज़िंदा है तो इसकी वजह लेफ्टिनेंट राम ही है। अब वह राम के पत्र को सीता तक जल्द से जल्द पहुँचाना चाहती थी पर वह कुछ नहीं कर सकती है क्योंकि वह सेना द्वारा पकड़ी जा चुकी थी। पर आफरीन के सीनियर बालाजी पर किसी को शक नही होता है और वह सीता का पता लगा लेता है। सीता हर साल कुछ दिनों के लिए कश्मीर आती है क्योंकि वह अभी भी राम का इंतजार कर रही होती है। बालाजी सीता से मिलता है और राम का पत्र उसे दे देता है।
सीता यानि की नूरजहां, पत्र देख कर भावुक हो जाती है और उसे खोलकर पढ़ने लगती है। राम ने पत्र के शुरुआत में लिखा था कि यह पत्र उनकी प्रेम कहानी का अंतिम अध्याय है। वह यह बताता है कि वह देशद्रोही नहीं हैं, और सीता को अपने मन कि आवाज पर विश्वास करना होगा।
इधर सीता पत्र पढ़ रही होती है उधर विष्णु सीता की तलाश कर रहा होता है। विष्णु सोच रहा होता है और फिल्म फ्लैशबैक में जाती है जहां पाकिस्तानी सेना राम और विष्णु से एक-एक करके अकेले में पूछताछ करती है। पाकिस्तानी सेना उन्हें एक डील की पेशकश करती है कि अगर वे कश्मीर में भारतीय सेना के ठिकानो का पता बता देंगे तो वे उन्हें जाने देंगे। राम मना कर देता है, लेकिन विष्णु सहमत हो जाता है और सब कुछ बता देता है। इसी वजह से पाकिस्तानी सेना विष्णु को रिहा कर देती है। फ्लैशबैक यहीं ख़त्म हो जाता है।
राम के पत्र में इस जानकारी का उल्लेख होगा यह सोचकर ही विष्णु नहीं चाहता था कि आफरीन सीता से मिले या उसे वह पत्र सीता को देने दे।
अगले दृश्य में सीता राम के पत्र को आगे पढ़ती है। जिसमे यह पता चलता है कि राम को 20 साल पहले ही पाकिस्तान में फांसी दे दी गई थी। यह पढ़कर वह रोने लगती है। उस लिफाफे में उस पत्र के साथ अखबार का एक टुकड़ा भी रहता है जिसमे राम और सीता कि फोटो वाली खबर रहती है। इससे पता चलता है कि राम को पता चल गया था कि सीता एक साधारण लड़की नहीं बल्कि एक राजकुमारी है।
अगले दृश्य में, पूरी दुनिया को पता चल जाता है कि राम देशद्रोही नही बल्कि एक सच्चा देशभक्त था। और पाकिस्तान सेना के साथ खुफिया जानकारी साझा करने वाला विष्णु था। सच्चाई सामने आने से विष्णु शर्म से आत्महत्या कर लेता है।
फिर आफरीन सीता से मिलती है और उसे पता चलता है कि राम जीवित नहीं हैं और उसे सच्चाई का पता चलता है।
अगले दृश्य में, हम देखते हैं कि भारतीय सेना राम को उनकी बहादुरी के लिए सम्मानित कर रही होती है और सीता गर्व से उनके पदक को स्वीकार करती है।
फिल्म के अंत में हम देखते है कि आफरीन अब बदल चुकी है। वह अब भारत से नफरत नही करती है। वह अपने हरकत के लिए आनंद मेहता से माफी भी मांगती है। अब वह राम कि तरह युद्ध के दौरान बनाये गए कैदियों की रिहाई का प्रयास करती है। फिल्म यहीं पर समाप्त हो जाती है।
बहुत समय बाद इतनी अच्छी लव स्टोरी देखने को मिली है जो असली प्यार का मतलब समझाती है और यह बताती है कि आप साथ रहे या ना रहे पर प्यार बरकरार रहना चाहिए वही सच्चा प्यार होता है। फिल्म के स्टार्ट में लगा कि यह भी बाकी लव स्टोरीज जैसी होगी पर अंत तक आते आते एकदम इमोशनल कर गयी। फिल्म एक सेकंड के लिए भी बोर नही करती है। इसके डायलॉग में शब्दों का चयन और उनकी डिलीवरी बहुत खूबसूरत है। कुल मिलाकर यह पूरी फिल्म ही बहुत खूबसूरत है।
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