Brahmastra Part 1: Shiva (ब्रम्हास्त्र पार्ट 1: शिवा) Movie explained in Hindi: Scene-by-Scene Explanation

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Brahmastra Movie: Scene-by-Scene Explanation

Spoiler Alert!

ब्रम्हास्त्र पार्ट 1 (शिवा) एक अच्छी वन-टाइम वाच फिल्म है। फिल्म की शुरुआत में हमें अमिताभ बच्चन की आवाज में बताया जाता है कि बहुत समय पहले शिव जी को खुश करने के लिए ऋषि-मुनियों ने बहुत बड़े यज्ञ किये थे। इससे भगवान शिव ने खुश हो कर उन्हें अलग-अलग वरदान और अस्त्र प्रदान किये। किसी को वानर-अस्त्र मिला, किसी को नंदी-अस्त्र मिला, किसी को जल-अस्त्र तो किसी को अग्नि-अस्त्र मिला। ऐसे ही कई सारे अलग-अलग अस्त्र प्रकट हुए। पर उनके साथ एक सर्व-शक्तिशाली अस्त्र भी प्रकट हुआ, जो शिव जी की तीसरी आँख के बराबर शक्तिशाली था। उसके प्रकट होते ही ब्रम्हांड में तबाही मचने लगी, पर बड़ा संघर्ष और बलिदान करके उन ऋषि-मुनियों ने उसे शांत कर लिया। उस अस्त्र का नाम था ब्रम्हास्त्र, जो कि सभी अस्त्रों का देवता था। फिर उन लोगों ने अपनी शक्तियों को मिलाकर ब्रम्हास्त्र की शक्ति को एक गोल पत्थर में डाल दिया। इसके बाद उन्होंने एक गुप्त-समूह बनाया और उसका नाम ब्रम्हांश रखा। फिर पीढ़ी-दर-पीढ़ी वो लोग उन अस्त्रों और ब्रम्हास्त्र की रक्षा करते रहे। 

अब कहानी वर्तमान में आती है जिसमे रणबीर कपूर की एंट्री होती है, जो शिवा का किरदार निभा रहे हैं। शिवा अनाथ है और पेशे से DJ है। दिन दशहरे का है और शिवा मुंबई में माँ दुर्गा के दर्शन करने एक मंदिर में गया हुआ है। पर वह जैसे ही अपनी आँखे बंद करता है उसे दिल्ली की एक जगह दिखाई देती है।  

फिर शाहरुख़ खान की एंट्री होती है जो एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक मोहन भार्गव का किरदार निभा रहे हैं। मोहन भी ब्रम्हांश का सदश्य है और उसके पास वानर-अस्त्र है। वानर-अस्त्र की शक्तियां एक कड़े में होती है जिसको मोहन पैरों में पहनता है। वह दिल्ली में एक बड़ी बिल्डिंग के टॉप फ्लोर पर रहता है। यहाँ हमें पता चलता है कि ब्रम्हास्त्र को जिस पत्थर में डाला गया था उसके 3 टुकड़े हो गए थे। उनमें से एक टुकड़े की रखवाली करना मोहन की जिम्मेदारी थी। पर उस टुकड़े को लेने के लिए ज़ोर और रफ़्तार नाम के 2 गुंडे वहां पहुंच जाते हैं। ज़ोर के पास बहुत ताकत होती है और रफ़्तार बहुत तेज़ होता है। वो दोनों मोहन पर हमला कर देते हैं, पर मोहन वानर-अस्त्र की शक्तियों के मदद से उनके सारे वार से बच जाता है और उनकी पहुँच से दूर जाकर छिप जाता है। साथ-ही-साथ ब्रम्हास्त्र के टुकड़े को एक डब्बे जैसे दिखने वाले माया-अस्त्र में डालकर उसे दूरबीन में बदल देता है। वह डब्बा माया-अस्त्र होता है जो अपने असली रूप में तभी आ पायेगा जब उस पर उस डब्बे के मालिक यानि कि मोहन का खून लगेगा। फिल्म में यह बताया गया है कि ब्रम्हांश के लोगों ने यह तरीका ब्रम्हास्त्र को सुरक्षित रखने के लिए बनाया था। ज़ोर और रफ़्तार उस डब्बे को खोजने की बहुत कोशिश करते है पर कामयाब नहीं हो पाते हैं। जब वे दोनों हार मान कर वहां से चले जाते हैं, तब मोहन वापस आता है और उस दूरबीन को अपने खून की मदद से वापस डब्बे में बदल देता है। पर यहाँ मोहन गलती कर देता है क्यूंकि ज़ोर और रफ़्तार वहां से गए नहीं थे बल्कि उन्होंने जाने का नाटक किया था। अब उन दोनों की बॉस जूनून भी वहां पहुंच जाती है जिसका किरदार मौनी रॉय ने निभाया है। जूनून के पास अग्नि अस्त्र के जैसी शक्ति होती है। उसके पास एक काले पत्थर से बना तावीज होता है  जो कोयले कि तरह जलता रहता है। उसे पहनने वाले को जूनून अपने वश में कर सकती है। वही ताबीज़ वह मोहन के गले में डाल देती है और उसकी मदद से उसे बंदी बना लेती है। फिर उससे ब्रम्हास्त्र वाला डब्बा छीन कर ब्रम्हास्त्र के टुकड़े को बाहर निकाल लेती है। पर जूनून जैसे ही उस टुकड़े को छूती है, कहीं दूर एक काले पत्थर से बनी एक विशाल मूर्ति में दरारे पड़ने लगतीं है और लाल आग उन दरारों में नज़र आती हैं। यह मूर्ति किसकी है इसके बारे में आगे बताया गया है। इसके बाद वह मोहन के पाँव से वानर-अस्त्र वाला कड़ा निकाल कर रफ़्तार को दे देती है और मोहन को बेहोश कर देती है। 

मोहन के बेहोश होते ही शिवा की आँखे खुल जाती हैं और वह खुद को उसी मंदिर में पाता है। वहां पर वह एक लड़की को पूजा करते हुए देखता है और उसे देखता ही रह जाता है। वह लड़की कोई और नहीं बल्कि आलिया भट्ट है जो ईशा का किरदार निभा रही है। पूजा करने के बाद शिवा दशहरा महोत्सव में चला जाता है, जहाँ वह दुबारा ईशा को देखता है। उस समय वहां पर रावण दहन हो रहा होता है और रावण को जलाते ही पुतले से कुछ अजीब सी लाल रंग की आग जैसी रौशनी निकल कर आसमान में जाती है और ऐसा लगता है कि वह रौशनी शिवा पर हमला करना चाहती है। पर शिवा को आग से कुछ नहीं होता है, वह बस बेहोश हो जाता है।

फिर कुछ दिनों बाद शिवा एक पार्टी में होता है और वहां से जल्दी से निकलने की कोशिश कर रहा होता है क्योंकि उसे एक अनाथ बच्चे के बर्थडे पार्टी में पहुँचना होता है। पर तभी उसे ईशा दिखाई देती है और वह अनाथालय जाने के बजाये ईशा के पीछे चल देता है। फिर दोनों में दोस्ती हो जाती है। फिर शिवा ईशा को अपने साथ उस अनाथालय में ले जाता है और बच्चो के साथ पार्टी करता है। पार्टी के बाद वह ईशा को अपना कमरा दिखाता है, जिसकी दीवारों के प्लास्टर टूटे-फूटे होते हैं। फिर वह ईशा को अपने बचपन की एक घटना के बारे में बताता है, जिसमे इसी कमरे में आग लग गयी थी और कमरे की हालत ऐसी हो गयी थी। उस आग मे उसकी माँ की मौत हो गयी थी, पर उसे कुछ नहीं हुआ था। वह उसे अपनी माँ की आखिरी निशानी दिखाता है जोकि एक शंख होता होता है। फिर दोनों साथ में बैठे होते है और जैसे ही शिवा ईशा का हाथ पकड़ता है, एक आग से बना त्रिशूल आसमान से उसकी तरफ बढ़ने लगता है। वह घबरा कर हाथ छोड़ देता है और हाथ छूटते ही त्रिशूल गायब हो जाता है। अभी ईशा कुछ समझती उसके पहले ही शिवा को वापस दौरा आने लगता है और दिल्ली में हो रही घटना दिखाई देने लगती है। 

उधर दिल्ली में मोहन को जब होश आता है तब जूनून उसको प्रताड़ित करके ब्रम्हास्त्र के बाकी 2 टुकड़ों का पता बताने के लिए कहती है। जब मोहन नहीं बताता है तो जूनून अपनी शक्तियों से उसके दिमाग पर नियंत्रण कर लेती है और जान जाती है कि एक टुकड़ा काशी यानि वाराणसी में अनीश शेट्टी (नागार्जुन) नाम के एक आर्टिस्ट के पास है और दूसरा हिमांचल में ब्रम्हांश के गुरुजी के पास है। जूनून अभी इतना ही पता लगा पाती है कि मोहन खुद पर कण्ट्रोल कर लेता है और जूनून के गुरुजी के बारे में पता लगाने से पहले ही बिडिंग से कूदकर जान दे देता है। उधर शिवा बेहोश हो जाता है।  

अगले दृश्य में जब शिवा को होश आता है तब वह ईशा को ढूंढ़ता हुआ उसके दुर्गा पंडाल में पहुँच जाता है। पंडाल में लगे टीवी पर उसे  मोहन भार्गव की आत्महत्या का समाचार मिलता है। तभी ईशा वहीं आ जाती है। शिवा ईशा को अपने सपने के बारे में बताता है। जिसके अनुसार मोहन ने आत्महत्या नहीं की थी बल्कि उसकी हत्या की गयी थी। फिर बाकि की कहानी भी उसे बता देता है। इसके बाद वो दोनों अनीश शेट्टी को बचाने वाराणसी चले जाते हैं। 

वाराणसी में घूमने के दौरान शिवा के हाथ में आग लग जाती है, पर उसे कुछ नहीं होता है। तब यहाँ ये पता चलता हैं कि आग उसकी तरफ आकर्षित होती पर उसे जलाती नहीं है और इसी वजह से बचपन में लगी आग में वह बच गया था, पर उसकी माँ जल गयी थी। उसकी माँ के मरने के बाद ये घटनाये बंद हो गयी थी पर ईशा से मिलने के बाद दुबारा शुरू हो गयी हैं। इसी बीच जूनून, ज़ोर और रफ़्तार वहां पहुँच जाते हैं। इसके पहले कि वो लोग अनीश को पकड़ते, शिवा सारी बातें उसे बता देता है। फिर उनके बीच लड़ाई होती है, जिसमे शिवा को बचाने में अनीश को गोली लग जाती है। पर अनीश को ज्यादा कुछ असर नहीं होता है क्यूंकि उसके पास नंदी-अस्त्र होता है जिसमे हज़ार नन्दियों की शक्तियां होती है। उसकी मदद से वो लोग वहां से एक कार में बैठ कर हिमांचल में गुरु के आश्रम के लिए निकल पड़ते हैं। पर जूनून और ज़ोर एक ट्रक में बैठकर उनके पीछे-पीछे आ जाते हैं। तब अनीश शिवा और ईशा को ब्रम्हास्त्र का दूसरा टुकड़ा देकर गुरुजी के पास भेज देता है और जूनून और ज़ोर को रोकने के लिए वहीं रुक जाता है। उन्हें रोकने के लिए अनीश उनके ट्रक को टक्कर मार के खायी में गिरा देता है पर खुद भी गिर कर मर जाता है। पर जूनून कवच-अस्त्र कि मदद से खुद को और ज़ोर को बचा लेती है। दूसरी तरफ रफ़्तार शिवा और ईशा के पीछे पड़ जाता है। किसी तरह वो लोग गुरु के आश्रम तक पहुंचते हैं पर रफ़्तार भी वहाँ पहुंच जाता है और ईशा को मारने के लिए बढ़ता है। शिवा जैसे ही ईशा को खतरे में देखता है वो गुस्से से रफ़्तार की तरफ हाथ उठाता है और तभी पास जल रही आग उसके पास से निकलकर रफ़्तार को जला कर राख कर देती है। रफ़्तार तो मर जाता है पर शिवा बेहोश हो जाता है। यहाँ पर अमिताभ बच्चन की एंट्री होती है जोकि गुरुजी का किरदार निभा रहे हैं। वह यह सब देख लेते हैं और शिवा को आश्रम में ले आते हैं। 

फिर जूनून फिल्म के स्टार्ट में दिखाई गयी मूर्ति यानी कि अपने गुरु के पास जाती है और उसको अब तक की सारी बातें बताती है। वह उससे और शक्तियां मांगती है ताकि वह उस मूर्ति को फिर से ज़िंदा कर सके और उसके लिए ब्रम्हास्त्र प्राप्त कर सके। इसके बाद शिवा को होश आ जाता है। जब वह बाहर निकलता है तो ईशा उसको लेकर वहीं रखी एक नाव के पास लेकर जाती है और ब्रम्हांश के 5 नए सदस्यों से मिलाती है, जिनका नाम शेर, रवीना, रानी, तेनजिंग और संत होता है। फिर वह गुरुजी से मिलता है जो उसे बताते हैं कि शिवा एक अग्नि-अस्त्र है। पर वह नहीं मानता है और ब्रम्हास्त्र की लड़ाई को उनकी लड़ाई बोलकर वहां से जाने लगता है। तब गुरुजी उसे बताते हैं कि ब्रम्हांश की लड़ाई सिर्फ उनकी नहीं बल्कि शिवा के माता-पिता की भी लड़ाई थी। वो दोनों ब्रम्हांश के योद्धा थे। यह सुनकर शिवा गुरुजी से अपने माँ बाप के बारे में बताने के लिए कहता है पर गुरुजी कहते है कि वह उसके माँ बाप के बारे में तभी बताएँगे जब वह आश्रम में रूककर अपने अंदर के अस्त्र यानि अग्नि-अस्त्र पर नियंत्रण करना सीख लेगा। फिर गुरुजी ईशा को ब्रम्हांश की सीनियर सदस्य सावित्री देवी (डिम्पल कपाड़िया) के साथ शिवा के सारे सामान को लाने के लिए मुंबई भेज देते हैं। इस दौरान हमें पता चलता है कि गुरुजी के पास भी एक अस्त्र है, जिसक नाम प्रभास्त्र है। 

अगले दृश्य में शिवा अपने सपने से जुड़ी सारी बातें गुरुजी और ब्रम्हांश के उन 5 नए सदस्यों को बताता है। फिर गुरुजी उसे अपनी शक्तियों को नियंत्रित करना सिखने के लिए कहते हैं। उदाहरण के लिए उसे नए सदस्यों की शक्तियां दिखाते हैं। शेर के पास नाग-अस्त्र यानि कि नाग-धनुष है, जिससे बिना कोई बाण लगाए ही वह जब चाहे नाग बाण चला सकता है। रवीना के पास गज-अस्त्र यानि कि गज-ढाल है, जिससे वह कहीं पर भी किसी के लिए अदृश्य ढाल बना सकती है। तेनसिंग के पास पवन-अस्त्र है, जिससे वह चीज़ों को हवा में उड़ा सकता है और नियंत्रित कर सकता है। रानी के पास ऐसा अस्त्र है, जिससे वह प्रकृति यानि पेड़-पौधों को नियंत्रित कर सकती है। शिवा बहुत प्रयास करता है पर उसे कुछ समझ नहीं आता है कि वह कैसे अपने अंदर की शक्ति को जगाये और नियंत्रित करे।  

अगले दृश्य में दिखता है कि उन काले पत्थरों की मदद से जूनून एक गांव के लोगों को अपने बस में कर के जोर के साथ उन्हें ईशा के पास भेजती है, जो शिवा के घर उसका सामान लेने गयी हुई है। जोर ईशा से आश्रम का पता पूछता है पर ब्रम्हांश के सीनियर लोग उसे बंदी बना लेते हैं। लेकिन नंदी अस्त्र की सहायता से जोर सबको हरा देता है और ईशा को घायल कर देता है। शिवा यह सब सपने में देख रहा होता है। वह जैसे ही ईशा को घायल देखता है वह उसे फ़ोन करता है और उसकी सलामती जानने के बाद उससे अपने दिल की बात कहने लगता है। अभी वह दिल की बात कह ही रहा होता है कि तभी आश्रम में रखे सारे दीपकों की लौ उसकी तरफ उड़ने लगती है। गुरु यह देखकर समझ जाते हैं कि शिवा की शक्ति उसके प्यार से नियंत्रित होती है। पर वह जब शिवा को बताते हैं तो वह कहता है कि वह आग से डरता हैं क्यूंकि क्या पता उसकी ही आग से उसकी माँ की मौत हुयी थी और यही आग ईशा को भी नुकसान पहुंचा सकती है। तब गुरु उसे समझाते हैं और वह अपनी शक्ति को नियंत्रित करना सीख लेता है।  

अगले दृश्य में जूनून द्वारा वश में किया हुआ एक आदमी शिवा की शक्तियों को ट्रैक करता हुआ आश्रम के नजदीक पहुंच जाता है। पर शिवा के आग बुझाते ही वह आगे बढ़ जाता है। शिवा ये नहीं समझ पाता कि उसकी आग के बुझते ही वह आदमी बिना कुछ किये वापस क्यों चला गया, उसकी शक्ति और उस आदमी के बीच क्या सम्बन्ध हो सकता है। तब गुरुजी सबको लेकर उस आदमी का पता लगाने के लिए निकल पड़ते हैं और रास्ते में शिवा को 30 साल पहले की कहानी बताते है, जब वह खुद एक शिष्य थे। उनकी कहानी के अनुसार उनके साथ ब्रम्हांश में एक योद्धा था जिसका नाम देव था। उसके पास अग्नि-अस्त्र की शक्ति थी और उसकी इन शक्तियों की वजह से लोग उसे अग्नि-देव भी कहते थे। वह एक नहीं बल्कि कई सारे अस्त्रों का स्वामी बन गया था। पर वह ब्रम्हास्त्र को हासिल करके ब्रम्ह-देव बनना चाहता था। उस समय ब्रम्हास्त्र तीन टुकड़ो में नहीं बटा था। देव ब्रम्हास्त्र के लिए पूरी दुनिया की बलि देने को तैयार था। इसके लिए उसने ब्रम्हांश के सीनियर सदस्यों को हराकर ब्रम्हास्त्र को जगा दिया। पर अमृता (दीपिका पादुकोणे) नाम की ब्रम्हांश की एक सदस्य ने उसे हराकर ब्रम्हास्त्र के 3 टुकड़े कर दिए। देव के जूनून और अमृता के कर्तव्य की लड़ाई के पहले वो दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे। पर दोनों की लड़ाई के बाद उनका कोई नामो-निसान नहीं मिला क्योंकि जिस द्वीप पर उनकी लड़ाई हुयी, वो समुद्र में समा गया। लड़ाई के बाद ब्रम्हास्त्र के 2 टुकड़े अमृता की नाव पर मिले थे पर तीसरे टुकड़े का क्या हुआ ये नहीं पता चला। 

इस कहानी के बाद गुरुजी शिवा को बताते हैं कि अमृता ही उसकी माँ है और देव उसका पिता है। शिवा कुछ समझ पाता उसके पहले ही वो लोग उस गांव में पहुँच जाते है जहाँ के लोगों को जूनून ने अपने वश में कर लिया होता है। वहां उन्हें वही लाल पत्थर वाला ताबीज दिखता है जिसे शिवा ले लेता है। फिर कुछ दूर आगे जाकर वो देखते हैं कि जूनून उन सभी को आश्रम ढूंढ़ने के लिए कहती है। जब वो लोग यह देख रहे होते हैं, तभी उस ताबीज़ के वश में आकर शिवा उसे अपने गले में डाल लेता है। उस ताबीज को गले में डालते ही शिवा होश खो देता है और उसकी चेतना देव की मूर्ति के पास पहुंच जाती है। देव की मूर्ति उसे अपनी तरफ खींचने लगती है तभी शेर शिवा के गले से वो ताबीज निकाल देता है और शिवा वापस होश में आ जाता है। फिर वो लोग गुरुजी की तलवार यानि कि प्रभास्त्र की मदद से वहां से बच निकलते हैं।
 
जब वो लोग आश्रम पहुंचते हैं तो ईशा शिवा का सामान लेकर वहां पहले ही आ चुकी होती है। फिर गुरु शिवा की माँ की आखिरी निशानी शंख पर शिवा का खून डाल कर उसमे से ब्रम्हास्त्र का टुकड़ा निकाल लेते हैं। इससे यह साबित हो जाता है कि अमृता ही शिवा कि माँ है और गुरूजी की कहानी सच है। फिर शिवा सबको बताता है कि जब उसने वह ताबीज पहना था तब उसने देव को देखा था, जो मरा नहीं है बल्कि उस मूर्ति में कैद है और उस कैद से निकलकर फिर से ब्रम्हास्त्र को पाना चाहता है। 

इसके बाद गुरुजी सारे सीनियर सदस्यों के साथ अस्त्रों को अलग-अलग जगहों पर भेज देते हैं। पर गुरुजी, शिवा, ईशा और बाकि के 5 सदस्यों के जाने से पहले ही जूनून आश्रम तक पहुँच जाती है और अचानक हमला करके शिवा को बेहोश कर देती है और बाकियों को बंधक बना लेती है। फिर गुरुजी से छीनकर ब्रम्हास्त्र के दूसरे टुकड़े को पहले वाले से जोड़ देती है। इसके बाद उनसे तीसरा टुकड़ा मांगती है। होश में आने के बाद शिवा तीसरा टुकड़ा ले कर जूनून के पास जाता है जो रानी को वश में करके उसे प्रताड़ित कर रही होती है। शिवा अपनी अग्नि-अस्त्र वाली शक्तियों के मदद से उसको और उसके लोगों पर हमला कर देता है। कोई चारा ना देखकर जूनून अपने गुरु देव से जल-अस्त्र की शक्ति मांगती है और फिर शिवा की आग पर काबू पा लेती है। लेकिन तब तक गुरूजी और ब्रम्हांश के नए सदश्य आज़ाद होकर शिवा की मदद के लिए आ जाते है। अभी उनकी लड़ाई हो ही रही होती है कि तभी ईशा ब्रम्हास्त्र के जुड़े हुए टुकड़े को लेकर वहां से भागने लगती है ताकि जूनून वह आखिरी टुकड़ा जोड़ न पाए। पर तेनजिंग तीसरा टुकड़ा भी लेकर ईशा के ही पास पहुंच जाता है और जूनून उन दोनों तक पहुँच जाती है। दूसरी तरफ जोर गुरूजी को घायल कर देता है। 

इससे पहले कि जूनून कुछ करे शिवा वहां पहुंच कर जूनून और ईशा के बीच में आग की दीवाल खड़ी कर देता है। पर जूनून देव (जो कि अग्नि-अस्त्र का असली मालिक होता है) की मदद से शिवा की शक्ति को निस्तेज कर देती है। इसके बाद जोर आकर शिवा को मारने लगता है और जूनून ईशा से ब्रम्हास्त्र लेने के लिए आगे बढ़ती है। वह ईशा को खायी में धक्का दे देती है पर तेनजिंग उसे अपनी शक्तियों से बचा लेता है और जूनून खुद खाई में गिर जाती है। दूसरी तरफ गुरूजी की मदद से शिवा अग्नि-त्रिशूल से जोर को माल डालता है।  

सब खुश हो जाते है और ईशा तेनजिंग को गले लगा लेती है पर तभी एक खंजर आ कर तेनजिंग को लगता है और वह ईशा के हाथ से छूटकर खायी में गिर जाता है। फिर जूनून खायी से बाहर आकर ब्रम्हास्त्र के तीनो टुकड़ों को जोड़ देती है। तीनों टुकड़ों के जुड़ते ही ब्रम्हास्त्र फिर से सजीव हो उठता है और जूनून उसके तेज को सह नहीं पाती है और उसका सरीर निश्चेत होकर खायी में गिर जाता है। ब्रम्हास्त्र के अंदर अपार शक्ति होती है, जिससे पूरा ब्रम्हांड ही डगमगा जाता है और उसके अंत की शुरुआत हो जाती है। ईशा ब्रम्हास्त्र के सबसे पास होती है तो उसे बचाने के लिए शिवा अपनी जान पर खेलकर उसके पास पहुंच जाता है। ब्रम्हास्त्र अपनी पूरी ताकत में आने लगता है। शिवा ईशा को बचाने के लिए अपने शरीर को उसकी ढाल बना देता है। जब ब्रम्हास्त्र की शक्ति शिवा से टकराती है तो शिवा के अंदर से आग के बने 8 हाथ निकल आते है और ईशा के लिए कवच बना लेते हैं। पर ब्रम्हास्त्र की शक्ति बाकि सबकुछ खत्म करने के लिए चारों तरफ फैलने लगती है और शिवा तड़पने लगता है। उसको तड़पता देखकर ईशा उसे छूती है और उसके छूते ही ब्रम्हास्त्र शिवा के काबू में आने लगता है और आखिरकार ब्रम्हास्त्र शांत हो जाता है। यहीं पर ब्रम्हास्त्र सीरीज के पार्ट 1 (शिवा) का अंत हो जाता है। 

पर अभी ये कहानी खत्म नहीं हुयी है क्योंकि जब जूनून ने ब्रम्हास्त्र के तीनों टुकड़ों को जोड़ा था तभी देव भी आजाद हो गया था। देव कौन है, यह पता तो नहीं चलता है पर आपको बता दूँ कि देव का किरदार रणबीर सिंह निभाने वाले है। बाकि की कहानी ब्रम्हास्त्र सीरीज के पार्ट 2 (देव) में देखने को मिलेगी। 

इस फिल्म में VFX काफी अच्छे हैं और कहानी नयी है। पर ऐसा लगता है कि डायलाग किसी बच्चे ने लिखे हैं। कहीं-कहीं पर तो डायलाग  इतने बेतुके हैं कि देखने वाले शर्मा जाये कि ये क्या बना दिया। पर फिल्म को एक बार तो देखा ही जा सकता है। अगली फिल्म में अमृता और देव की कहानी होगी और अंत में शायद उन दोनों के बीच की लड़ाई को दिखाया जाए। पर अभी के लिए हम बस अंदाजा ही लगा सकते हैं।  असली कहानी तो फिल्म के रिलीज़ होने के बाद ही पता चलेगी। अभी के लिए इस रिकैप को पढ़कर कहानी का मज़ा लीजिये। 
 
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धन्यवाद!


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